सफलता की कहानी कोरोना कर्मवीर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कांता मीणा ने कोरोना का डर कर नहीं लड़कर किया मुकाबला

जयपुर। अगर इंसान की इच्छाशक्ति प्रबल हो तो वह हर मुसीबत से बाहर निकल आता है। अपने बच्चों के लिए जीने की जिजीविषा ने ही कोरोना से लड़ने की हिम्मत दी, जिसकी वजह से मैं आज कोरोना को हराकर जीत गई हूं। यह कहना है 32 वर्षीय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कांता मीणा का उन्होंने कहा कि मन में विश्वास हो और जीने की ललक हो तो बड़ी से बड़ी आपदा से मुकाबला कर आगे बढ़ा जा सकता है।

 

उनका कहना है कि जरूरत है आशावादी होने की निराशा को अपने मन में स्थान नहीं दे। हर पल भगवान से प्रार्थना करते हुए ईश्वर पर भरोसा रख कर ही मैं अपने बच्चों के लिए इस महामारी से लड़ कर स्वस्थ होकर घर आई हूं। सजग प्रशासन, सूझबूझ और सतर्कता से मैंने कोरोना महामारी का सामना किया। लॉकडाउन से पूर्व  जयपुर के बागर लाल हवेली क्षेत्र में घर -घर सर्वे कर वॉरियर्स की भूमिका को निभाते हुए कोरोना संक्रमित होने पर श्रीमती मीना का 23 अप्रैल को सैम्पल लिया और जाँच में पॉजिटिव पाये जाने पर उसे पूर्णिमा यूनिवर्सिटी में एडमिट कराया गया।

 

उसके बाद दुबारा 28 अप्रैल को पॉजिटिव आने पर 4 नंबर डिस्पेंसरी में उन्हें शिफ्ट किया गया वहां इलाज के दौरान ब्लड प्रेशर कम हो जाने से 2 मई कोे एस.एम.एस अस्पताल के आईसीयू में शिफ्ट किया गया और 14 मई को पुनः जाँच हुई  तो नेगेटिव रिपोर्ट आने  के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर होम आइसोलेशन में रखा गया।

 

श्रीमती कांता ने बताया कि मैंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था इसलिए मैं हर हाल में अपने बच्चों के लिए जीना चाहती थी, क्योंकि मां के बिना जीवन जीने के लिए किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है यह मैं अपने बच्चों के साथ नहीं होने देना चाहती थी। मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं मेरे दो बच्चे है उन्हीं के लिए मैं कोरोना रूपी राक्षस को हरा कर आई हूं। परिवार के हर सदस्य ने मेरा हौंसला बनाए रखने में मेरी हर संभव मदद की। आज भी मैं  होम आइसोलेशन के दौरान हर पल जीवन को एक नए उत्साह के साथ देखती हूं और मानसिक शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करती हूं। होम आइसोलेशन खत्म होने के बाद मैं वापस अपनी सेवाएं जारी रखूंगी।

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